प्रसार भारती में मुनक़्क़िद हुई तलफ़्फ़ुज़ वर्कशाप

तारीख़ 16.12.2019
दूरदर्शन कम्पलेक्स, कॉपरनिकस मार्ग, नई दिल्ली 




पिछले सोमवार की बाद दोपहर लखनऊ से तलफ़्फ़ुज़ टीम दूरदर्शन पहुंची। दूरदर्शन के डायरेक्टर-जनरल श्री मयंक अग्रवाल ने अपने चेंबर में टीम के सभी मैंबर्स से मुलाकात की .. मौक़ा था दूरदर्शन के ऐंकर्ज़, न्यूज़-रीडर्स एवं रिपोर्टर्ज़ के लिए "तलफ़्फ़ुज़ और मीडिया" वर्कशाप का आयोजन।



औपचारिक मुलाकात के बाद कार्यक्रम का आग़ाज़ हुआ... शुरूआत में तलफ़्फ़ुज़ टीम की तरफ़ से डायरेक्टर-जनरल श्री मयंक को एक हरा-भरा पौधा भेंट किया गया.. तलफ़्फ़ुज़ की सरपरस्त कुलसुम तलहा ने उम्मीद ज़ाहिर की इस पौधे पर तलफ़्फ़ुज़ की पत्तियां आएंगी...



श्री मयंक ने भी अपने ख़्यालात रखे...उन्होंने टीम के बारे में कहा कि इन सभी ट्रेनर्ज़ से बडे़-बड़े पत्रकार भी सही उच्चारण सीखते हैं...  वहां हाज़िर सभी लोगों को उन्होंने कहा कि इन लोगों से उच्चारण की बारीकियां सीखिए।

गुज़रे दौर को याद करते हुए उन्होंने कहा कि एक वक़्त था  रेडियो और टेलीवीज़न पर ख़बरें पढ़ने वाले उन पुराने न्यूज़-रीडर्ज़ का जिन का उच्चारण एकदम सही होता था ...यहां तक कि अंग्रेज़ी का उच्चारण भी ऐसा होता था कि शायद उतना अच्छा तो अंग्रेज़ों का भी न होगा। लेकिन आजकल सही उच्चारण की बहुत समस्या दिखने लगी है ...प्राईव्हेट चैनलों में भी यही हाल है। कहा कि वाट्सएप के दौर में तो भाषा ही ख़त्म हो रही है , ऐसे में उच्चारण की तो बात ही क्या करें !!


कुलसुम तलहा ने कहा कि एक दो घंटे में कोई उर्दू तो नहीं सीख सकता, लेकिन हां, जो लोग भी इस वर्कशाप में शरीक हैं उन के ज़ेहन को उस तरफ़ मोड़ के जाएंगे कि आप को ज़ेर-ज़बर की फ़िक्र होगी ...आप यह भी सोचने पर मज़बूर हो जाएंगे कि नुक्ता सही लगाया है या नहीं ... क्योंकि उर्दू के लफ़्ज़ का नुक्ते से सारा मतलब ही बदल जाता है...और रेडियो-टीवी के लोगों के लिए तो सही उच्चारण सब से ज़्यादा महत्वपूर्ण है ...उन की रोज़ी-रोटी से जुड़ा हुआ मौज़ू है ! टी.वी में तो शक्ल और अल्फ़ाज़ मिल जाते हैं ..लेकिन रेडियो में तो सारा ध्यान आवाज़ पर ही रहता है।


प्रो. साबरा हबीब साहिबा ने कहा कि हम लोग आप को कुछ सिखाने हरगिज़ नहीं आये हैं.. कुलसुम ने यह जो मुहिम शुरू की है उस में हम ने लोगों के ज़ेहन को सही तलफ़्फ़ुज़ की तरफ़ मोड़ने का काम शुरू किया है ...क्योंकि लोगों को अल्फ़ाज़ की अदायगी के वक़्त पता ही नहीं होता कि वे ग़लत बोल रहे हैं...उन्हें तो बस यही लगता है उर्दू का मतलब इतना है कि हर हर्फ़ के नीचे एक नुक्ता लगा दिया जाए।


प्रोफैसर साहिबा ने बताया कि वह भी मास्को रेडियो और टेलीवीज़न पर रूसी भाषा में ख़बरें पढ़ती रही हैं....लेकिन हर रोज़ दो घंटे तक तो रिहर्सल हुआ करती थी ताकि अल्फ़ाज़ का तलफ़्फ़ुज़ दुरूस्त हो ! कोई भी विधा हो ..शायरी हो, नज़्म हो, गज़ल हो, नस्र हो ... जब तक लफ़्ज़ की अदायगी ठीक नहीं होगी तब तक यही लगता रहेगा जैसे दूध में मक्खी गिर गई हो।दिक़्क़त एक और भी तो हो गई हो --कोई किसी को टोकता ही नहीं ...लेकिन टोके कौन? - टोकने वाले को भी तो पता हो कि सही क्या है ..इसलिए एक से जैसा सुनते हैं वैसे ही यह सिलसिला आगे चलता रहता है.

डा साबरा ने मीडिया में रोज़ाना इस्तेमाल होने वाले बीसियों अल्फ़ाज़ की उदाहरण देकर सही तलफ़्फ़ुज़ के बारे में समझाया ...इस दौरान उन्होंने शेयरो-शायरी के ज़रिए भी सही अदायगी की बात सभी मीडिया कर्मियों तक पहुंचाई। इन में से मुझे भी कुछ याद रह गये ...एक बात उन्होंने और भी कही कि वाट्सएप वाली शेयरो-शायरी से बच कर रहें ...यह बिखरे हुए दिमाग़ की बहकी हुई एक अदा है।

मिले ख़ुलूस तो ग़ैरों में जा के मिल बैठो
न हो ख़ुलूस तो अपनों में भी न बैठो...

मैं लोगों से मुलाक़ातों के लम्हे याद रखता हूं
मैं बातें भूल भी जाऊं मैं लहजे याद रखता हूं...

नज़र नज़र में उतरना कमाल होता है
नफ़स नफ़स में बिखरना कमाल होता है
बुलंदियों पे पहुंचना कोई कमाल नहीं
बुलंदियों पे ठहरना कमाल होता है

निदा फ़ाज़ली साहब की बात चली - उन के वालिद की जब वफ़ात हुई तो उन्होंने एक नज़्म लिखी ...तुम्हारी क़ब्र पर मैं फ़ातिहा पढ़ने नहीं आया....अल्फ़ाज़ की सही अदायगी का अहसास दिलाने के लिए प्रो. साबरा हबीब ने इसे भी सुनाया...पोस्ट लिखते लिखते मुझे ख़्याल आ रहा है कि क्यों न इस को निदा फ़ाज़ली साहब की आवाज़ में ही आप तक पहुंचाया जाए...लीजिए, जनाब, समाअत फ़रमाइए...



प्रोफैसर साहिबा ने इसी बात पर ज़ोर दिया कि हर ज़बान ख़ूबसूरत है लेकिन हम किस तरह से उस के ज़ेवरात संभाल कर रखें...उस को ख़ूबसूरत बनाए रखें...बस, इस वर्कशाप का मक़सद यही है कि थोड़े से समय में आप सब को यह अहसास करवाया जा सके. ..

कुलसुम तलहा ने फ़रमाया कि हमारे ट्रेनर्ज़ की टीम इतने कम वक़्त में यह जो आप को सही तलफ़्फ़ुज़ की एक फ़ील देने आई है ...टीवी रेडियो की ज़ुबान में कहें तो ये प्रोमोज़ ही हैं ...ये आप की रोज़ी-रोटी से जुड़ी हुई बातें हैं ...यह एक स्किल एंड अवेयरनेस वर्कशाप है ...मक़सद यही है कि आप सब बोलचाल की ज़बान को साफ़ रखें ...आप के ज़ेहन को रोशन करने की  हमारी यह छोटी-सी कोशिश है ..


हर दिल अज़ीज़ शन्नै नक़वी साहब ने दाग़ देहलवी, अकबर इलाहाबादी के शेयर पेश किए ..

उर्दू है जिस का नाम हमीं जानते हैं दाग़
सारे जहां में धूम हमारी ज़ुबां की है .  (दाग़ देहलवी)

मेरी घुट्टी में पड़ी थी हो के हल उर्दू ज़बां
जो भी मैं कहता गया हुस्न-ए-बयां बनता गया.  (फ़िराक़ गोरखपुरी)

और ख़ुमार बाराबंकवी के अंदाज़ में उन की एक रचना पेश की ...शन्नै साहब की उम्दा अदायगी और तलफ़्फ़ुज़ पर ध्यान दीजिए... !!



यह उम्दा बात सीधे हमारे दिल में भी उतर गई ....
बेमौत मार डालेंगी ये होशमंदियां
जीने की आरज़ू है तो धोके भी खाइए...😂




मो क़मर ख़ां साहब ने उर्दू के हुरूफ़ के बारे में तफ़सील से बताया और मीडिया में इस्तेमाल होने वाले ऐसे अल्फ़ाज़ की एक शीट भी (जिन का तलफ़्फ़ुज़ आम तौर पर ग़लत किया जाता है) में सम्मिलित होने वाले सभी लोगों को दी गई।




प्रोग्राम के इख़्तिताम में डायरेक्ट्रेेट-जनरल की तरफ़ से टीम के सभी मैंबर्ज़ को एक ख़ूबसूरत मिमेंटो उपहार-स्वरूप भेंट किया गया .. डी डी न्यूज़ का कॉफी मग!!


शन्नै नक़वी साहब ने एक बार फिर समां दिया -





تبصرے

اس بلاگ سے مقبول پوسٹس

کشوری کونیکٹ اردو ورکشاپ जोशोख़रोश से चल रही है किश्वरी कनेक्ट उर्दू वर्कशाप

Mohd. Qamar Khan - A Brief Introduction