کشوری کونیکٹ اردو ورکشاپ जोशोख़रोश से चल रही है किश्वरी कनेक्ट उर्दू वर्कशाप
बड़े उत्साह से चल रही है यह उर्दू वर्कशाप ... उर्दू प्रेमी जो इस में शिरकत कर रहे हैं उन का उत्साह देखते ही बनता है। लेकिन वर्कशाप के जो आरगेनाईज़र्ज़ हैं उन का भी जज़्बा भी महसूस करने लायक और क़ाबिले-तारीफ़ है...
सीखने वालों को सब कुछ जल्दी से जल्दी सीख लेने की चाहत है और सीखाने वालों को ज़्यादा से ज़्यादा इल्म बांटने की जल्दी है...अभी चार दिन ही हुए हैं और इस वर्कशाप के शिरका रोज़मर्रा की ज़िंदगी में इस्तेमाल होने वाले अल्फ़ाज़ जोड़ कर के लिखने-बोलने लगे हैं -- यहां तक की चार हर्फी अल्फाज़ भी वे चार दिनों के कम समय में समझ कर और हिज्जे लगा कर पूरी समझ के साथ बोलने लगे हैं। अच्छा लगा इस तरह की प्रोग्रैस देख कर ...इन दिनों में इन्होंने उर्दू के तमाम हुरूफ सीख लिए, उन को लिखने की बारीकियां सीखीं, उन के सिम्बोलिक अच्छे से समझे (जो कि उर्दू इबारत में इस्तेमाल होते हैं) और फिर उन पर लगने वाली एराब (जिन्हें हिंदी में मात्राएं कहते हैं) पर अपनी पकड़ मज़बूत की ...और आखिर में इन हुरूफ को मिला कर लिखने के नियम-कायदे समझे ....इतना सब कुछ जान लेने के बाद रहा ही क्या !! ....जी हां, अब रहा इन सीखने वालों की अपनी अपनी मेहनत ...ताकि जो सीखा है वह पुख़्ता हो जाए और याद रह जाए...
मज़ेदार बात एक और भी देखी इस वर्कशाप में कि यह वर्कशाप बिल्कुल भी उबाऊ नहीं है ...बड़े पार्टीसिपेटिव एवं एंटरएक्टिव से लगे इस के सैशन ...आज उर्दू के ट्रेनर जनाब मोहम्मद क़मर ख़ान सब शिरका को बारी बारी से उन का नाम लिखना सिखा रहे थे ...और पहली बार अपना नाम उर्दू में लिखा देख कर और उस के हिज्जे समझ कर शिरका की खु़शी का ठिकाना नहीं था....और ख़ान साहब द्वारा उन को यह ताकीद भी की जा रही थी कि अब आप लोग अपने अपने नाम को चालीस-पचास बार होम-वर्क के तौर पर जा कर लिखिए..
एक बात और ...वर्कशाप में आने वाले सभी लोगों को पहले ही दिन से उर्दू का अख़बार लगाने की सलाह दी गई थी ...ताकि उर्दू के हरूफ़ से वाकिफ़ियत होने पर वे उर्दू अख़बार की कुछ खबरों आदि के हरूफ़ टटोल टटोल कर और अक़ली गद्दे लगा लगा कर अल्फ़ाज़ टटोलना शुरू करें ...और यह बहुत कारगार उपाय है शुरूआत में ..
यहां मैं अपना अनुभव भी शेयर करना चाहूंगा ...उर्दू सीखते वक्त मैं अख़बार तो रोज़ाना पढ़ता ही था..(अभी भी पढ़ता हूं) ..इस के साथ ही साथ मुझे पुराने हिंदी फिल्मी गीत 60-70-80 के दशक के गीत बहुत पसंद है ं....इन गीतों को सुन कर हम लोग जितना लुत्फ़-अंदोज़ होते हैं इस के पीछे भी इन गीतों को लिखने वाले महान शायरों की बेहतरीन उर्दू ही है ....हां, तो मैं अपनी बात कह रहा था...मुझे ऐसे ही आते जाते फुटपाथ पर लगने वाले किताबों के स्टाल से फिल्मों गीतों की किताबें मिल गईं जो उर्दू में लिखी हुई थीं....बस फिर क्या था, मैं यू-ट्यूब पर वही गीत लगा लेता और साथ में वह किताब सामने रख लेता ....बहुत हेल्प मिली इस से भी ...हर किसी को अपना अपना तरीका इजाद तो करना ही पड़ता है...
हर किसी को साथ लेकर चलने का जज़्बा ....पिछला सबक दोहराते हुए ट्रेनर |
लखनऊ में यह जो किश्वरी कनेक्ट वर्कशाप चल रही है ...इस का फार्मेट बहुत बढ़िया है ....कुछ कमियां सीखने वालों की तरफ़ से ही रह रही हैं ...क्योंकि इतने कम दिनों के लिए चलने वाली वर्कशाप में अगर एक दिन भी गैर-हाज़िर हो जाएँ तो बहुत कुछ छूट जाता है ...लेकिन इन ट्रेनर्ज़ का उत्साह देखिए...जिन लोगों ने देर से ज्वाइन किया है या जो लोग बीच में एक दिन दो दिन किसी कारण नहीं आ पाए ...उन को वह पार्ट कवर करने के लिए सैशन से पहले आ जाते हैं ...और सैशन ख़त्म होने के बाद भी बैठे रहते हैं...ऐसी ही एक तस्वीर मैंने यहां लगाई है । और यहां तक कि चाय की ब्रेक के दौरान भी ऐसे सैशन चलते ही रहते हैं...
और हां, हैंड्स-ऑन भी इस वर्कशाप का हिस्सा है, आप जितना चाहें...इस तसवीर में आप देख रहे हैं ख़ान साहब (वर्कशाप के एक पार्टीसिपेंट) उर्दू कैलीग्राफी पर हाथ साफ़ कर रहे हैं ...और नुक्तों की बारीकियां शेयर कर रहे थे ... बहुत अच्छे, ख़ान साहब।
इस वर्कशाप के आर्गेनाईज़र्ज़ को वर्किंग क्लास और स्टूडेंट्स की मुश्किलों का आभास है ...इसलिए एक बार जो ऐसी वर्कशाप कर लेता है वह भविष्य में होने वाली इन की सभी वर्कशाप में शिरकत कर सकता है ...और एक बात, जिन लोगों ने एक दो दिन बाद इस वर्कशाप को ज्वाईन किया है, उन का भी ध्यान रखते हुए ..किश्वरनी कनेक्ट ने अगली वर्कशाप 14 अप्रैल से करने का फ़ैसला किया है ...इन के फेसबुक पेज़ से जुड़िए and stay updated!
आज के लिए इतना ही काफ़ी है ...काफ़ी गलतियां होंगी, उर्दू अल्फ़ाज़ को हिंदी में लिखा है तो उन में नुक्तों की बहुत सी गलतियां तो होंगी ही ....पहले भी कहा था कि अगर हो सके तो कमैंट्स में बता दें, वरना कोई बात नहीं ...अब तो यह सिलसिला कच्ची-पक्की उर्दू के सहारे यूं ही चलता रहेगा ....
हिंदी फिल्मों के गीतकारों ने भी उर्दू ज़बान की बेहतरीन खिदमत की है ...ऐसा ही एक गीत अभी सुन रहा था ... आप भी सुनिए ..फिल्म है मेरे हुज़ूर ....
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