किश्वरी कनेक्ट उर्दू वर्कशाप में डा साबरा हबीब

इस उर्दू वकर्शाप में पहले पांच दिन जनाब क़मर ख़ान साहब ने उर्दू के हुरूफ़ के बारे में जानकारी दी, इन की सिम्बॉलिक शक्लों के बारे में बताया और लफ़्ज़ बनाते समय कैसे इन हुरूफ़ का मिलान होता है , इस के बारे में बहुत कुछ बताया...आप पांच दिन में जितना उर्दू की इबारत के बारे में सीखने का तसव्वुर कर सकते हैं, उस से भी ज़्यादा ही बताया...


वर्कशाप के छठे दिन (5अप्रैल) डा साबरा हबीब साहिबा तशरीफ़ लाईं ...उन्होंने दो दिन तक उर्दू तलफ़्फ़ुज़ के बारे में चर्चा की। उन्होंने बिल्कुल सही फरमाया कि यह कोई क्लॉस नहीं है ...हम कुछ पढ़ाने नहीं आते यहां.....आप से इंटरएक्ट करने आते हैं...और ज़बान के सही इस्तेमाल के लिए तजस्सुस पैदा करना चाहते हैं...

बिल्कुल सही बात ...शिरका को भी उन के सैशन बिल्कुल ऐसे लगे जैसे घर की बैठक में गुफ़्तगू चल रही हो ...यही ऐसी तज़िबःकार शख़्शियतों का बड़प्पन होता है कि कितनी सहजता से बड़े से बड़ा सबक़ सिखा जाते हैं...


डा साबरा ने रोज़मर्रा की उर्दू , बातचीत वाली उर्दू की बात की .. इस सिलसिले में उन्होंने मिर्जा गालिब के ख़तूत का ज़िक्र किया ..उन की ज़बान की सादगी की तारीफ़ की। उन्होंने कुछ सबक़ पढ़ कर सुनाए ...तलफ़्फ़ुज़ की तरफ़ ध्यान दिलाया...



कईँ अश्आर उन्होंने बोर्ड पर लिखे ..और शिरका से पढ़ने को कहा ... उन्होंने यह कह कर भी सब का मनोबल बढ़ाया कि धीरे धीरे टटोल टटोल कर पढ़ना होगा शुरुआती दौर में ... जैसे बच्चों की रिड्ल्स की गेम होती है ..बच्चे जब रिड्ल्स की पज़ल्स हल करने लगते हैं धीरे धीरे ...उसी तरह से शुरू में उर्दू सीखने वालों को भी ऐसे ही हुरूफ पहचान कर अल्फ़ाज़ बनाने होंगे ....

उन से सुना मुझे यह शेर याद आ रहा है ....

मैं लोगों से मुलाक़ातों के लम्हें याद रखता हूं...
बातें भूल भी जाऊं लहजे याद रखता हूं...

डा साहिबा ने गज़ल और नज़्म के बारे में बहुत अच्छे से और आसान तरीके से समझाया..., मर्सीया, क़सीदा की भी चर्चा की..जोश मलीहाबादी, निदा फ़ाज़ली से जुड़ी बहुत सी बातें शेयर कीं...और तलफ़्फ़ुज़ में होने वाली आम गलतियों के बारे में बताया...इसी दौरान आम बोल चाल में इस्तेमाल होने वाले बहुत से अल्फ़ाज़ और उन के मानी बताए...


डा साबरा ने दो दिनों में इतना कुछ बताया सिखाया कि उन बातों को एक पोस्ट में लिखना मुमकिन नहीं है... उन से इंटरएक्ट कर के जितना लुत्फ़  शिरका को आया, उस का तसव्वुर आप इस पोस्ट को पढ़ कर कतई नहीं कर सकते ... 

मुझे यह कहने में ज़रा सी भी झिझक नहीं है कि इस वर्कशाप के सभी ट्रेनर्ज़ अपने आप में यूनिवर्सिटी हैं ... इसलिए मेरा मशविरा यही है कि अगर आप ने भी इस उर्दू तलफ़्फ़ुज़ वर्कशाप से बहुत कुछ सीखना है तो 14 अप्रैल से शुरू होने वाले नये बैच के लिए रजिस्टर करवा दें.....बाकी का काम ट्रेनर्ज़ का है.. आप अपने आप को उन के सुपुर्द कर दीजिए...


और हां, डा साबरा अपने साथ बहुत सी हाथ से लिखी हुई स्क्रिप्ट्स भी ले कर आई थीं...जिन का सही तलफ़्फ़ुज समझने के लिए बारी बारी से सभी पार्टीसिपेंट्स ने उन को पढ़ा...उन्होंने उन का तलफ़्फ़ुज दुरुस्त किया और ख़ास बात हरेक की कोशिश की बहुत हौसला अफ़्ज़ाई भी की ...


ऐसी ही एक स्क्रिप्ट आप भी पढ़ के अपने तलफ़्फ़ुज़ जांच लीजिए ..
सभी पार्टिसिपेंट्स को एक एक स्क्रिप्ट पढ़ने को दी गई

डा साबरा रूसी ज़बान की भी स्कॉलर हैं, उस दिन वर्कशाप में उन के द्वारा लिखी गई एक किताब देखी...रूसी भाषा सीखने वालों के लिए .. इस में छपी हुई पिक्चर्ज़ उन से रूसी भाषा सीखने वाले स्टूडेंट्स ने बनाई हैं...

और सैशन ख़त्म होने के बाद पार्टीसिपेंट्स की फ़रमाईश पर ...सेल्फी टाइम ...
मुस्कुराइए जनाब ......आप लखनऊ में हैं 😀

इस उर्दू वर्कशाप के बारे में आप इन लिंक्स पर जा कर भी पढ़ सकते हैं...




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