उर्दू वर्कशाप की एक दोपहर गज़ल और नज़्म के नाम

पिछली पोस्टों में आपने किश्वरी कनेक्ट उर्दू वर्कशाप के बारे में पढ़ा - किस तरह से वर्कशाप के ट्रेनर्ज़ बड़ी मेहनत से ट्रेनीज़ तक उर्दू ज़बान की मिठास पहुंचा रहे थे ... अब आगे चलते हैं ...7 अप्रैल को वर्कशाप का आठवां दिन था ...और आज आने वाली थीं दो अज़ीम शख़्शियतें -- प्रिंसीपल ऑयशा सिद्दिकी साहिबा और हर दिल अज़ीज जनाब शन्नै नक़वी।


अवधनामा के वक़ार रिज़वी साहब ने भी वर्कशाप में बहुत दिलचस्पी ली ..

मैडम सिद्दिकी साहिबा प्रिंसीपल रह चुकी हैैं, एक बेहतरीन ट्रेनर तो हैं ही ...साथ ही साथ वह एक उम्दा अफ़सानानिगार भी हैं। और शन्नै नक़वी का भी कोई जवाब नहीं, खुशबख़्ती ही कहिए अगर ऐसी बेलौस शख़्शियतों के साथ कुछ वक्त बिताने का मौक़ा हासिल हो जाए।

लखनऊ की विरासत में जो नज़ाकत और नफ़ासत है उस का एक ट्रेलर देखना हो तो आप को मैडम ऑयशा सिद्दिकी साहिबा से मिलना होगा, उन की बातें सुननी होंगी ...बोलचाल में इतनी नरमी और अपनापन...मुझे यहां एक बात याद आ गई ...कुछ महीने पहले किश्वरी कनेक्ट ने आल इंडिया रेडियो लखनऊ के एनांउसरों एवं प्रोग्राम पेश करने वालों के लिए चार दिन की एक वर्कशाप की थी ...यह रहा उस का लिकं - आल इंडिया रेडियो में तलफ़्फ़ुज़ वर्कशाप ... उस दौरान उन्होंने यह फरमाया था ...


जब भी रेडियो पर बोल रहे हैं तो लहजा लतीफ़ हो, नरम हो, जो बात कहें साफ़ हो, सुथरी हो, मिशरी की डली हो। और यह तभी मुमकिन है जब बोलने वाले का तलफ़्फ़ुज़ दुरुस्त है। 

हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में भी यह बात पूरी खरी उतरती है ..

शन्नै नक़वी साहब के बारे में उस दिन एक नई बात पता चली...यह एक जानी-मानी हस्ती हैं ... शन्नै साहब मजलिसों में भी पढ़ते हैं जहां हज़ारों का मजमा होता है ...और जब यह गज़ल सुनाते हैं तो इन्हें माइक की भी ज़रूरत नहीं होती... इतनी बुलंद और बेहतरीन आवाज़ में यह जब गज़ल सुनाते हैं तो समय बंध जाता है ...

उस दिन किश्वरी कनेक्ट की सरपरस्त कुलसुम तल्हा बता रही थीं इन के बारे में  कि इन की यादाश्त ऐसी है कि इन्हें सब कुछ मुंह-ज़बानी याद है , कभी किसी कागज़ की मदद नहीं लेते और एक बात....इन्हें इंगलिश के कीट्स, वर्ड्सवर्थ और शैली जैसे लोगों की रचनाएं भी याद हैं ... यह किश्वरी कनेक्ट की इंगलिश कम्यूनिकेशन वर्कशाप के साथ भी जुड़े हुए हैं..। पेशन की वजह से जुड़े ऐसे लोगों को हमारा सलाम...।

मैडम ऑयशा ने भी आम ज़बान की अहमियत से शुरुआत की ... उर्दू ज़बान ही तो हम बोलते आ रहे हैं बचपन से ..कोई इसे चाहे तो हिंदोस्तानी कह ले ...इस को लिखना-पढ़ना भी आना चाहिए। चार- छः दिन में कोई ज़बान नहीं सीखी जाती ...एक रास्ता दिखाया जा सकता है, चलना तो सीखने वालों को पड़ेगा..

आज का सैशन गज़ल और नज़्म पर था ... उन्होंने कहा कि शायरी हम सब को अच्छी लगती है। मीर तक़ी मीर की बात चली --उन्हें खुदा-ए-सुख़न के नाम से पुकारा जाता है .. कहते हैं कि मिर्ज़ा ग़ालिब भी मीर तक़ी मीर को बहुत मानते थे ...

मीर कहते हैं कि मैं शायरी नहीं करता...अपने दिल का हाल ब्यां करता हूं , वह शायरी हो जाती है ..


गज़ल के बारे में बहुत कुछ बताया गया...नज़्म के बारे में भी बहुत कुछ पता चला... क़ता के बारे में भी जाना... बहुत से महान शायरों, अदीबों की बातें हुईं ... ट्रेनर्ज़ को तो जैसे सब कुछ रटा हुआ हो...इतनी सहजता से उन को इतना कुछ शेयर करते देख कर ताजुब्ब भी होता है ...

एक बात यह भी है कि इस तरह की वर्कशाप के बारे में आप इस तरह की पोस्ट पढ़ कर कुछ नहीं जान सकते ...ये तो एक ट्रेलर ही समझ लीजिए ...या उस से भी कम ...जैसे हम लोग पहले फ़िल्म देखने जाया करते थे और हाल में जाने से पहले और बीच में इंटरवल के दौरान चाय-समोसा खाते वक्त वहां शीशे की खिड़की में लगी फिल्म की कुछ तस्वीरें देख कर ख़ुश हो लिया करते थे, बस यह पोस्ट भी उतने तक ही है ...वर्कशाप से बहुत कुछ हासिल करने के लिए आप को टिकट लेकर हाल के अंदर तो जाना ही होगा ...

अगली वर्कशाप के बारे में तो आप को अब तक पता चल ही गया है, यह 14 अप्रैल को शुरु होने वाली है ....और जहां तक इस की फीस का सवाल है ....उसे भी आप फीस नहीं कह सकते .. कुलसुम तल्हा इसे कमिटमैंट फीस कहती हैं...बिल्कुल सही बात है...यह आप की कमिटमैंट के लिए ली जाती है ...और उन्होंने उस दिन कहा कि जो लोग किसी वजह से यह नहीं भी दे पाएं लेकिन उर्दू सीखने की चाह रखते हैं, हम उन्हें भी ख़ुशआमदीद कहते हैं...और हां, एक बार आपने एक वर्कशाप कर ली तो फिर आप आने वाले समय में होने वाली वर्कशाप में भी बे रोक-टोक शिरकत कर सकते हैं..देखिए, अगर आप के आस पास कोई हो जो इस से फ़ायदा उठाना चाहे ...

कामकाजी लोगों को अगर यह टाईमिंग सही नहीं बैठ रही तो इस पेम्फलेट पर दिए नंबरों पर संपर्क कीजिए...आप के कहने पर टाईमिंग शाम के 5-30 से 7 बजे तक भी किया जा सकता है ..

वर्कशाप के बहाने हमें इस तरह के ट्रेनर्ज़ के बीसियों सालों के अनुभवों से बहुत कुछ सीखने को मिलता है ...उस दिन प्रिंसीपल सिद्दिकी साहिबा ने भी फरमाया कि आप कुछ भी पढ़िए... कहानियां, नावेल, व्यंग्य ..जो भी आप के मन को मन भाए उसे पढ़िए ..और इस के साथ साथ आप रोज़ उर्दू में कुछ न कुछ ज़रूर लिखिए ...शुरुआत अपनी डॉयरी लिखने से ही कीजिए...उसे उर्दू में लिखिए ...घर का जो हिसाब किताब है उसे भी उर्दू में लिखना शुरु तो कीजिए...गलतियां होगीं, धीरे धीरे कम होती जाएंगी और फिर आप देखेंगे कि आप तो बिल्कुल सही लिखने लगे हैं। उन्होंने हममानी अल्फाज़ को भी याद रखने ...और अल्फाज़ के सही इस्तेमाल की मश्क़ करने को कहा...

मुझे कईं बार ऐसा लगता है कि आज हम सब को बहुत कुछ सीखने की चाहत तो है, लेकिन सब्र कम है...हम चाहते हैं कि बस जल्दी से भी जल्दी हम लोग बहुत कुछ सीख जाएं ..अफ़सोस, कुछ भी सीखने के लिए शार्ट-कट चलते नहीं, थोडा़ बहुत तपना पड़ता है, पसीना बहाना पड़ता है .......नहीं, नहीं, इस वर्कशाप में ऐसी तपिश बिल्कुल नहीं है, बड़ा ख़ुशगवार माहौल होता है वहां...वह तो मुझे अपना ही ज़माना याद आ गया था ...कैसे हम लोग सुबह सुबह अच्छे से पुती हुई एक तख़ती लेकर अपने उस्ताद के पास पहुंच जाया करते थे ...थोड़े थोड़े डर के साथ ...और फिर वह हमें कईं कईं महीनों तक वर्णमाला के वही अक्षर बार बार लिखने को कहा करते थे ...जैसे हम लोग अपने आप को उन फ़रिश्तों को सुपुर्द कर दिया करते थे ... कोई भी ज़बान सीखने के लिए भी ऐसा ही जज़्बा चाहिए ....

वर्कशाप के दौरान रुबाई के बारे में बातें हुई, मसनवी के बारे में जाना ....और भी बहुत कुछ ...ट्रेनर्ज़ ने कहा कि ग़ालिब, मीर तक़ी मीर, अकबर इलाहाबादी, अल्लामा इक़बाल ...की शायरी से शुरुआत कीजिए..
सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तान हमारा ...(अल्लामा इक़बाल)
(हमारी नोटबुक का एक पन्ना ... शुक्रिया जनाब क़मर ख़ान साहब)

जनाब शन्नै नक़वी ने भी बहुत ही गज़ले और नज़्में पेश कर के सभी शिरका को मंत्र-मुग्ध कर दिया...उन्होंने फ़िराक़ गोरखपुरी साहब की यह गज़ल भी सुनाई ..

यह तो नहीं कि ग़म नहीं, 
हां, मेरी आंख नम नहीं ...
तुम भी तो तुम नहीं हो आज
हम भी तो आज हम नहीं..
अब न ख़ुशी की है ख़ुशी 
ग़म भी अब तो ग़म नहीं....

ऐसे ही कब सैशन पूरा हो गया किसी को पता ही नहीं चला ...फिर वक्त था एक ग्रुप फोटोग्राफ का ... 





गज़ल के सैशन के दौरान बाज़ार फिल्म के इस गीत का भी ज़िक्र चला था ... सुनिए आप भी...

इस पोस्ट को लिखने की जल्दी में मुझे लगता है कि नुक्तों की कुछ गलतियां ज़रूर हुई होंगी ...उन्हें नज़र अंदाज़ कर दीजिए...हो सके तो कमैंट्स में नीचे लिख दीजिए..

تبصرے

  1. apnī urdu to mohabbat kī zabāñ thī pyāre
    ab siyāsat ne use joḌ diyā maz.hab se

    Jai hõ

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  2. abhī tahzīb kā nauha na likhnā

    abhī kuchh log urdu bolte haiñ



    AKHTAR SHAHJAHANPURI

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    جوابات
    1. Of course, they are doing marvellous job...very dedicated and selfless team.
      Just being in their presence is so inspiring!

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  4. Dr sahab mery paas alfaz nai apko kya kahoo

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