کبھی الودہ مت کہو دوستو، نہ جانے کہاں پھر ملاقات ہو कभी अलविदा न कहना
8 अप्रैल को इस वर्कशाप का वेलीडिक्ट्री फंक्शन था ... सभी शिरका को इस दिन सर्टिफिकेट्स भी मिलने थे...ख़ूब रौनक थी अवधनामा के मीडिया सेंटर में ....
इस प्रोग्राम के मेहमान-ए-ख़सूसी थे ..जनाब ब्रिगेडियर अहमद अली साहब ..जो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के वाइस-चांसलर भी रह चुके हैं ..और अब बाराबंकी में जहांगीराबाद इंस्टीच्यूट के डॉयरेक्टर हैं...
इस में आने वाले सभी विशेष अतिथियों ने उर्दू ज़बान के बारे में अपने जज़्बात सब के सामने रखे .. लेकिन इस पोस्ट को छोटा रखने के लिए मुख़्तसर बात ही करेंगे ..
अवधनामा के जनाब वक़ार रिज़्वी साहब के अवधनामा के मीडिया सेंटर पर ही यह वर्कशाप हुई ...उन्होंने भी इस के बारे में अपने ख़्यालात रखे और उर्दू के फ़रोग़ के लिए किसी भी तरह की कोशिशों को प्रोत्साहित करने का वादा किया ... वक़ार साहब बड़े उम्दा वक्ता भी हैं ...कुछ दिन पहले लखनऊ यूनिवर्सिटी में मिर्ज़ा ग़ालिब साहब पर हुए एक सेमीनार में इन्हें सुनने का मौक़ा मिला था ...खुलेपन से अपने दिल की बात सामने रखते हैं। इन का अख़बार अवधनामा भी बहुत पसंद किया जाता है ..
किश्वरी कनेक्ट की सरपरस्त कुलसुम तल्हा ने भी वक़ार रिज़्वी साहब का तहे-दिल से शुक्रिया अदा करते हुए उस सभा में बताया कि इस से पहले उन की संस्था सच में एक ख़ान:बदोश की तरह से काम कर रही थी, उन्हें जगह ढूंढना पड़ती थीं जहां वे इस उर्दू ज़बान की मिठास का जलवा आम जन तक पहुंचा सकें...लेकिन वक़ार साहब ने फ़िराक़-दिली से ऐसी पेशकश कि आप जब चाहें इसी अवधनामा के मीडिया सेंटर में ही उर्दू सिखाने-पढ़ाने का काम करिए ...
यहां यह बताना ज़रूरी होगा कि यह अवधनामा का मीडिया सेंटर की लोकेशन भी सब शिरका के लिए बहुत कन्विनिएंट है...और यहां सब का पूरा ख़्याल रखा जाता है ... वर्कशाप के दौरान चाय और लाइट-स्नैक्स भी रोज़ाना आप की ख़िदमत में पेश किए जाते हैं...
यह वेलिडिक्ट्री दिन का प्रोग्राम चला तो लगभग अढ़ाई घंटे से भी ज़्यादा ...लेकिन लिखते समय यह समझ नहीं आता कि क्या लिखें और क्या छोड़ दें...क्योंकि स्टेज पर अपनी बात रखने वाले हर इंसान की बातों में तरह तरह की सीख छुपी हुई थी ...उन के बेशकीमती अनुभव थे ...जिन्हें हम किताबों में नहीं पढ़ पाते ..
वर्कशाप अटेंड करने वाले सभी शिरका को सर्टिफिकेट बांटे गये ... ब्रिगेडियर साहब को कुछ शिरका की उर्दू इबारत की नोटबुक्स भी दिखाई गईं ..जिन्हें देख कर उन्हें बेहद खुशी हुई ...
पहली पंक्ति में दिख रहे हैं (बाएं से) मो. क़मर ख़ान, अवधनामा के वक़ार रिज़्वी, और डा साबरा हबीब |
इस प्रोग्राम के मेहमान-ए-ख़सूसी थे ..जनाब ब्रिगेडियर अहमद अली साहब ..जो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के वाइस-चांसलर भी रह चुके हैं ..और अब बाराबंकी में जहांगीराबाद इंस्टीच्यूट के डॉयरेक्टर हैं...
इस में आने वाले सभी विशेष अतिथियों ने उर्दू ज़बान के बारे में अपने जज़्बात सब के सामने रखे .. लेकिन इस पोस्ट को छोटा रखने के लिए मुख़्तसर बात ही करेंगे ..
इस प्रोग्राम की निज़ामत करते हुए डा साबरा हबीब |
अवधनामा के जनाब वक़ार रिज़्वी साहब के अवधनामा के मीडिया सेंटर पर ही यह वर्कशाप हुई ...उन्होंने भी इस के बारे में अपने ख़्यालात रखे और उर्दू के फ़रोग़ के लिए किसी भी तरह की कोशिशों को प्रोत्साहित करने का वादा किया ... वक़ार साहब बड़े उम्दा वक्ता भी हैं ...कुछ दिन पहले लखनऊ यूनिवर्सिटी में मिर्ज़ा ग़ालिब साहब पर हुए एक सेमीनार में इन्हें सुनने का मौक़ा मिला था ...खुलेपन से अपने दिल की बात सामने रखते हैं। इन का अख़बार अवधनामा भी बहुत पसंद किया जाता है ..
किश्वरी कनेक्ट की सरपरस्त कुलसुम तल्हा ने भी वक़ार रिज़्वी साहब का तहे-दिल से शुक्रिया अदा करते हुए उस सभा में बताया कि इस से पहले उन की संस्था सच में एक ख़ान:बदोश की तरह से काम कर रही थी, उन्हें जगह ढूंढना पड़ती थीं जहां वे इस उर्दू ज़बान की मिठास का जलवा आम जन तक पहुंचा सकें...लेकिन वक़ार साहब ने फ़िराक़-दिली से ऐसी पेशकश कि आप जब चाहें इसी अवधनामा के मीडिया सेंटर में ही उर्दू सिखाने-पढ़ाने का काम करिए ...
यहां यह बताना ज़रूरी होगा कि यह अवधनामा का मीडिया सेंटर की लोकेशन भी सब शिरका के लिए बहुत कन्विनिएंट है...और यहां सब का पूरा ख़्याल रखा जाता है ... वर्कशाप के दौरान चाय और लाइट-स्नैक्स भी रोज़ाना आप की ख़िदमत में पेश किए जाते हैं...
यह वेलिडिक्ट्री दिन का प्रोग्राम चला तो लगभग अढ़ाई घंटे से भी ज़्यादा ...लेकिन लिखते समय यह समझ नहीं आता कि क्या लिखें और क्या छोड़ दें...क्योंकि स्टेज पर अपनी बात रखने वाले हर इंसान की बातों में तरह तरह की सीख छुपी हुई थी ...उन के बेशकीमती अनुभव थे ...जिन्हें हम किताबों में नहीं पढ़ पाते ..
कुलसुम तल्हा ने सभी का स्वागत किया और वक़ार रिज़्वी साहब का भी तहेदिल से शुक्रिया अदा किया |
सर्टिफिकेट्स लेते हुए कुछ पार्टिसिपेंट्स की तस्वीरें जो मेरे कैमरे में चली आईँ 😃...
अब बारी थी ...मेहमान-ए-ख़सूसी ब्रिगेडियर अली साहब को सुनने की .. उन की स्पीच भी सुनने लायक थी...उन्होंने बताया कि फौज की 36 साल की सर्विस के बाद वह अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में वाइस-चांसलर हो गए ...और वहां पर उर्दू पढ़ना लाज़िम नहीं था...उन्होंने एक ऑर्डिनेंस के ज़रिए अंडरग्रेजुएट्स की सभी स्ट्रीम्स ...आर्ट्स, साईंस, कॉमर्स ..सभी में 50 नंबर का उर्दू का पर्चा शुरू करवा दिया ..पर्चे में पास होना ही ज़रूरी न था, बल्कि उर्दू की क्लास में 75 प्रतिशत हाज़िरी भी ज़रूरी कर दी ...स्टूडेंस इस ज़बान में दिलचस्पी लेने लगे जब सैकेंड क्लास वाले स्टूडेंटस के नंबरों में उर्दू के भी नंबर जुड़ने लगे और वह फर्स्ट डिवीजन तक पहुंचने लगा ... वह बता रहे थे कि यह सिलसिला लगभग चार साल से वहां जारी है ...
ब्रिगेडियर साहब ने फ़ौज में उर्दू भाषा के इस्तेमाल के बारे में भी बड़े दिलचस्प किस्से सुनाए .. उन्हें सुनना सब को बहुत अच्छा लगा ... उन्होंने भी किश्वरी कनेक्ट संस्था को एक खुला निमंत्रण दिया कि आप जब चाहें, जहांगीराबाद इंस्टीच्यूट में आकर उर्दू की क्लासें करिए...."इंस्टीच्यूट सब तरह की सुविधाएं वहां मुहैया करवाएगी...बस, आप वहां भी आकर लोगों के उर्दू के तलफ़्फ़ुज़ को दुरुस्त करने के लिए कुछ कीजिए"...उन्होंने कहा।
अभी इस पोस्ट को बंद कर रहा हूं ..मुझे पूरा यूकीन है कि जो उस दिन इस वेलिडिक्ट्री फंक्शन में हुआ ....मैं अपनी सारी कोशिश के बावजूद ...ये तस्वीरें-वीरें लगा कर भी ...उस नज़ारे का फ़क़त 5-10 फ़ीसद ही आप तक पहुंचा पाया हूं....अभी याद आया कि वर्कशाप के एक पार्टिसिपेंट सुमित तिवारी ने एक गीत भी तो सुनाया था .. और उस के उम्दा तलफ़्फ़ुज़ की सब ने बड़ी तारीफ़ की थी . मैंने उसे रिकार्ड तो नहीं किया था ..लेकिन यू-ट्यूब की मदद लेते हैं, उसी गीत को सुनते हैं...
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