उर्दू ज़बान में ब्लॉगिंग करने की तमन्ना

उर्दू ज़बान में ब्लॉगिंग करने की तमन्ना तो कईं महीनों से थी...लेकिन झिझक थी कि उस ज़बान को अभी अच्छे से जानता भी नहीं, ऐसे में यह तो बड़ा मुश्किल काम है ...

कईं बार बीच बीच में कोशिश की ...लेकिन यह नहीं पाया ...किसी लफ़्ज के हिज्जे नहीं पता और किसी का सही नहीं पता..ऐसे में कैसे हो पाएगा यह।

बस यही सोचते सोचते यह झिझक बनी रही ....

फिर अपने दिल से कहा कि सीखते सीखते तो उम्र ही बीत जाएगी... जितना सीखा है उसी से शुरूआत तो की जाए...यही सोच कर आज 1 अप्रैल 2019 से यह ब्लॉग शुरू करने का फ़ैसला किया...

फ़िक्र इस लिए ख़ास नहीं कि न तो मैं किसी भी भाषा का विद्वान हूं और न ही होना चाहता हूं...सीधी सादी दिल की बात को बस कागज़ पर उतार देने की एक तमन्ना है बस, इस से ज़्यादा कुछ नहीं कि मेरे लिखे हुए को सराहा जाए .. ऐसी चाहत भी नहीं है और ऐसी काबिलियत भी नहीं है ....शायद चाहिए भी नहीं।

वैसे भी मैं किसी भी भाषा के विद्वानों से बड़ा दूर भागता हूं क्योंकि जाने-अनजाने कुछ विद्वान लोग आम लोगों को अपनी विद्वता से डरा सा देते हैं...जहां ज़रूरी भी नहीं, भारी भरकम लफ़्ज़ इस्तेमाल कर देते हैं...जब कि इन्हें अच्छे से मालूम है कि आम आदमी इन अल्फ़ाज़ को नहीं जानता ...फिर भी अपने भाषणों में इन मोटे-तगड़े-मुश्किल अल्फ़ाज़ को ऐसे ठूंस देते हैं जैसे ..., सच में ये बाउंसर का ही काम करते हैं शायद, जैसे शादी-ब्याह और विभिन्न पार्टीयों में बाउंसर बंधु अनचाहे बिन बुलाए मेहमानों को दूर रखने के लिए होते हैं...कुछ विद्वानों के भाषणों के कुछ अल्फ़ाज़ भी आम लोगों को उन की बात से दूर रखने का काम कर देते हैं...

चलिए ...यह मानते हैं कोई अदबी या साहित्यिक सम्मेलन हो रहा है, वहां तो मान लेते हैं सब लोग ख़ूब पढ़े-लिखे लोग होते हैं इसलिए ऐसे भारी भरकम अल्फ़ाज़ का इस्तेमाल मुनासिब जान पड़ता है लेकिन आम लोगों के समूह के सामने उन की ही रोज़मर्रा की बोलचाल की भाषा में ही क्यों न अपनी बात रखी जाए...

यह नाचीज़ 2007 से ब्ल़ॉगिंग सीखने की कोशिश कर रहा है ...हिंदी, पंजाबी, इंगलिश में तो कोशिशें जारी हूैं, आज सोचा कि इस फ़हरिस्त में उर्दू को भी शामिल कर लिया जाए ...

एक डेढ़ साल पहले एक कहानी लिखी ...हिंदी की एक लेखिका को दिखाया, उसे बहुत पसंद आई....लेकिन उन्होंने कहा कि बाकी तो ठीक है लेकिन आपने इस में उर्दू के कुछ शब्द इस्तेमाल किए हैं, उन्हें हटा दीजिए। उन के बिना कहे ही मैं बहुत कुछ समझ गया। एक और बात सुनिए....आप उर्दू लिखिए, मेरे कहने का मतलब है कि उर्दू में इबारत लिखिए तो कभी यह सुनना पड़ता है कि इस में उर्दू अल्फ़ाज़ भी डालिए ....लेकिन यह बहुत कम सुनने को मिलता है ...

मेरे दिल ने भी यही कहा कि यह हिंदी उर्दू का झगड़ा ही ख़त्म किया जाए...एक खिचड़ी ही बना ली जाए...हिंदी और उर्दू की ....सुबह से लेकर रात तक, तुतलाते हुए बच्चे और तुतलाते हुए आखिरी सांसों पर टिके बुज़ुर्ग भी तो यही गंगा-जमुनी ज़बान ही तो कह सुन रहे हैं ..ऐसे में हम लोग क्यों ज़बान के नाम पर एक दूसरे पर तीर कमान ताने खड़े हैं..

बस, इसी बात ने मुझे यह ब्लॉग शुरू करने पर मजबूर कर दिया ...यह आइडिया कल ही आया कि मिक्स ब्लॉग ही शुरू किया जाए..

जैसा कि मैंने कहा कि मैं एक अदना-सा डेंटिस्ट हूं ... और ज़बान के मामले में तो अदना-सा भी नहीं ...इसलिए हर तरह की गल्तियां होंगी इस ब्लॉग में ...हिज्जों की भी, अल्फ़ाज़ के गल्त इस्तेमाल की भी ...लेकिन कोशिश यही रहेगी कि अपने दिल की बात इस ब्लॉग-नुमा डॉयरी में हिंदी-उर्दू में कह सकूं ...जो लिख सकूंगा वह उर्दू में भी लिखूंगा इस ब्लॉग में ...चाहे कलम से या टाइपिंग से ...लेकिन कोशिश जारी रहेगी ...कोशिश तो लेकिन रहेगी ....देखते हैं..

आज अप्रैल की पहली तारीख़ है ...लेकिन यह ब्लॉग शुरू करना एप्रिल फूल बनाना नहीं है ....इस पहली पोस्ट को बंद करते हुए एक विचार आया कि ऊपर मैंने लिखा कि कुछ विद्वान बंधु भारी-भरकम समझ में न आने वाले अल्फ़ाज़ अपनी बात में ठूंस देते हैं लेकिन बॉलीवुड़ के अधिकतर गीतों-गज़लों की ख़ुशबू का जादू देखिए ....हिंदी-उर्दू मिश्रित ज़बान को ऐसी चाशनी में घोल देते हैं कि उस गीत में दस-बीस अल्फ़ाज़ समझ में नहीं भी आते ...लेकिन हम लोग गीतकार का मतलब समझ लेते हैं और बार बार उस गीत को रेडियो पर सुनने की फ़रमाईश भिजवाते रहते हैं...क्योंकि इन गीतों की भाषा इतनी सादा और प्यारी होती है कि सीधा दिल में उतर जाती है ....

हां, एक बात और .. जैसे मैं हिंदी और पंजाबी ब्लॉगिंग करते वक्त पोस्ट के नीचे अपना कोई पसंदीदा गीत, गज़ल, कव्वाली एम्बेड करता हूं, यह सिलसिला यहां उर्दू-हिंदी ज़बान के इस ब्लॉग में ही जारी रहेगा।

जैसा मैं पहले ही कह चुका हूं ....इस हिंदी उर्दू के गंगा-जमुनी ब्लॉग में आप को हर तरह की गल्तियां मिलेंगी ....उन्हें माफ़ मत कीजिए, न ही मैं इस के लिए माफ़ी मांगूंगा ...लेकिन उन गल्तियों को बराए मेहरबानी कमैंट्स में ज़रूर लिखिए। यह भी ध्यान में रखिएगा कि यह किसी विद्वान का ब्लॉग नहीं है, मैं पहले ही कह चुका हूं ...बस यह समझ लीजिए यह भाषा सीखने वाले किसी प्राईमरी कक्षा के छात्र का ब्लॉग है ..

एक बात का और ध्यान रखूंगा और यह कोशिश भी करूंगा कि जहां भी इबारत उर्दू में लिखूंगा ...क़लम से या टाइपिंग से ...तो उसे हिंदी में भी ज़रूर लिखूं...

जाते जाते बिन मांगे एक मशविरा दे रहा हूं....आप की उम्र कुछ भी हो, उर्दू ज़बान ज़रूर सीख लीजिए...इस की ख़ुशबू अनूठी है, इस से आप की शख़्शियत चमकती है ....


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